जहाँ सारे देवी देवता दिव्य आभूषण-वस्त्र धारण करते हैं वहीं शिव जी शरीर पर भस्म लगाते हैं ! वे बिल्कुल अलग एवं विचित्र हैं, शिव का ना आदि है ना अंत !
शिव को मृत्यु का देवता कहा गया है ! मृत्यु के बाद, शरीर के राख हो जाने के उपरांत चिता की बची भस्म को अपने शरीर पर लगाते हैं ! शिव जी का सारा शरीर भस्म से ही ढका रहता है !
जीतने भी अघोरी, सन्यासी, साधु हैं वो अपने शरीर को भस्म से ही ढके रहते हैं ! भस्म ही उनका वस्त्र होता है ! आपने यह कुंभ महा पर्व पर भी ये देखा होगा !
भस्म का विशेष गुण यह होता है कि इसको लगाने से शरीर पर गर्मी, सर्दी नहीं लगती, यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है ! भस्म त्वचा संबंधित रोगों में भी औषधि का काम करती है !
शिव जी एक योगी हैं, जो योगी होगा, सन्यासी होगा वह इस संसार से अलग प्रकृति के करीब रहना पसंद करेगा ! इसलिए जितने भी साधु संत हैं वो निर्वस्त्र रह, भस्म लगा, संसार की मोह-माया को त्याग, सुख साधनों को छोड़ जंगलों या गुफ़ाओं में रह कर भगवान का भजन करते हैं !
शिव जी दर्शाते हैं कि हमारा शरीर नश्वर है, यह एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा अत: हमें इस शरीर पर अभिमान नहीं करना चाहिए ! कोई भी व्यक्ति चाहे सुंदर हो या कुरूप, मरने के बाद उसका शरीर मिट्टी (भस्म) ही बन जाएगा !