कुंडली मिलान

भारतीय ज्योतिष में विवाह शादी के लिए कुंडली मिलान के लिए गुण मिलान की विधि आज भी सबसे अधिक प्रचलित है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर निम्नलिखित अष्टकूटों का मिलान किया जाता है।

वर्ण

वश्य

तारा

योनि

ग्रह-मैत्री

गण

भकूट

नाड़ी

कुंडली गुण मिलान एक अद्भुत एवं कठिन कार्य हैं, जिसमे कई ज्योतिष्य संयोग और नियमों को परखा जाता हैं, ज्यादातर ज्योतिषी अष्टकूट चक्र या अवकहडा चक्र का उपयोग लड़के और लड़की के गुण दोष मिलान के लिए करते हैं|

अष्टकूटों को क्रमश: एक से आठ तक गुण प्रदान किये जाते हैं, जैसे कि वर्ण को एक, नाड़ी को आठ तथा बाकी सबको इनके बीच में दो से सात | इन गुणों का कुल जोड़ 36 बनता है और इन्हीं 36 गुणों के आधार पर कुंडलियों का मिलान किया जाता है। 36 में से जितने अधिक गुण मिलते हैं, उतना ही अच्छा माना जाता है।

यदि फलादेश में प्राप्त गुण में 0 या शून्य या अशुभ योग प्राप्त करते हैं तो इसे दोष माना जायेगा, लेकिन ज्योतिष में ऐसे कई परिहार या व्यवस्थाएं मौजूद हैं जो इन दोषों को नष्ट कर सकती हैं, या उनके प्रभाव को काफी हद तक कम कर सकती हैं, इसे ही दोष परिहार कहा जाता हैं |

यह देखना चाहिए कि क्या वर-वधू दोनों की कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्ष्ण मौजूद हैं या नहीं। इसके पश्चात वर तथा वधू दोनों की कुंडलियों में आयु की स्थिति, कमाने वाले पक्ष की भविष्य में आर्थिक सुदृढ़ता, दोनों कुंडलियों में संतान उत्पत्ति के योग, दोनों पक्षों के अच्छे स्वास्थय के योग तथा दोनों पक्षों का परस्पर शारीरिक तथा मानसिक सामंजस्य देखना चाहिए। सिर्फ गुण मिलान के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित करने के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं।

कुंडली मिलान के अन्य नियम :- वर के सप्तम स्थान का स्वामी जिस राशि में हो, वही राशि कन्या की हो तो दांपत्य-जीवन सुखमय होता है।यदि कन्या की राशि वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो तो दांपत्य-जीवन में प्रेम बढ़ता हैै। संतान और सुख होता है।वर के सप्तमेश का नीच स्थान यदि कन्या की राशि हो तो भी वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। वर का शुक्र जिस राशि में हो वही राशि यदि कन्या की हो तो विवाह कल्याणकारी होता है।वर की सप्तमांश राशि यदि कन्या की राशि हो तो दांपत्य-जीवन सुखकारक होता है। संतान, ऎश्वर्य की वृद्धि होती है।वर का लग्नेश जिस राशि में हो, वही राशि कन्या की हो या वर के चंद्र लग्न से सप्तम स्थान में जो राशि हो वही राशि यदि कन्या की हो तो दांपत्य-जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है।वर की राशि से सप्तम स्थान पर जिन ग्रहों की दृष्टि हो, वे ग्रह जिन-जिन राशियों में स्थित हो, उन राशियों में से कोई भी राशि कन्या की जन्मराशि हो तो दांपत्य में अपूर्व प्रेम रहता है।यदि पुरूष की कुंडली की षष्ठ और अष्टम स्थान की राशि कन्या की जन्म राशि हो तो दंपति में परस्पर कलह होता है। वर-कन्या के जन्म लग्न और जन्म राशि के तत्वों का भी विचार करना चाहिए।