काल सर्प दोष

जब कुंडली के सारे ग्रह, सूर्य, चन्द्र, गुरू, शुक्र, मंगल, बुध तथा शनि जब राहू और केतु के बीच में आ जाएं तो काल सर्प दोष बनता है। उदाहरण के तौर पर अगर राहू और केतु किसी कुंडली में क्रमश: दूसरे और आठवें भाव में स्थित हों तथा बाकी के सात ग्रह दो से आठ के बीच या आठ से दो के बीच में स्थित हों और ऐसी कुंडली वाला व्यक्ति अपने जीवन काल में तरह-तरह की मुसीबतों आती हैं!

अधिकतर कुंडलियों में सारे ग्रह राहू और केतू के बीच में आने के बावजूद भी काल सर्प दोष नहीं बनता जब कि कुछ एक कुंडलियों में एक या दो ग्रह राहू-केतू के बीच में न होने पर भी यह दोष बन जाता है। इसलिए काल सर्प दोष की उपस्थिति के सारे लक्ष्णों पर गौर करने के बाद ही ईस दोष की पुष्टि करनी चाहिए! अगर काल सर्प दोष किसी कुंडली में उपस्थित भी हो, तो कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण बातों पर गौर करना बहुत आवश्यक है, जैसे कि कुंडली में यह दोष कितना बलवान है, कुंडली धारक की किस आयु पर जाकर यह दोष जाग्रत होगा तथा प्रभावित व्यक्ति के जीवन के किन हिस्सों पर इसका असर होगा।

बारह प्रकार के कालसर्प योग

  • कुलिक कालसर्प योग
  • वासुकि कालसर्प योग
  • शंखपाल कालसर्प योग
  • पदम कालसर्प योग
  • महापदम कालसर्प योग
  • तक्षक कालसर्प योग
  • कारकोटक कालसर्प योग
  • शंखचूड़ कालसर्प योग
  • घातक कालसर्प योग
  • विषधर कालसर्प योग
  • शेषनाग कालसर्प योग