ग्रहों का स्वभाव

सूर्य ग्रह

वैदिक ज्योतिष में सूर्य को ऊर्जा, पराक्रम, आत्मा, अहं, यश, सम्मान, पिता और राजा का कारक माना गया है। ज्योतिष के नवग्रह में सूर्य सबसे प्रधान ग्रह है। इसलिए इसे ग्रहों का राजा भी कहा जाता है। पाश्चात्य ज्योतिष में फलादेश के लिए सूर्य राशि को आधार माना जाता है। यदि जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति प्रबल हो अथवा यह शुभ स्थिति में बैठा हो तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके सकारात्मक प्रभाव से जातक को जीवन में मान-सम्मान और सरकारी नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति होती है। यह अपने प्रभाव से व्यक्ति के अंदर नेतृत्व क्षमता का गुण विकसित करता है। मानव शरीर में मस्तिष्क के बीचो-बीच सूर्य का स्थान माना गया है।

मंगल ग्रह

ज्योतिष विज्ञान में मंगल को शक्ति, पराक्रम, साहस, सेना, क्रोध, उत्तेजना, छोटे भाई, एवं शस्त्र का कारक माना जाता है। इसके अलावा यह युद्ध, शत्रु, भूमि, अचल संपत्ति, पुलिस आदि का भी कारक होता है। गरुण पुराण के अनुसार मनुष्य के नेत्रों में मंगल ग्रह का वास होता है। यदि किसी व्यक्ति का मंगल अच्छा हो तो वह स्वभाव से निडर और साहसी व्यक्ति होगा और उसे युद्ध में विजय प्राप्त होगी। परंतु यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में बैठा हो तो जातक को नकारात्मक परिणाम मिलेंगे। जैसे- व्यक्ति छोटी-छोटी बातों से क्रोधित होगा तथा वह लड़ाई-झगड़ों में भी शामिल होगा। ज्योतिष में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। वहीं मंगल दोष के कारण जातकों को वैवाहिक जीवन में समस्या का सामना करना पड़ता है।

बृहस्पति ग्रह

ज्योतिष में बृहस्पति को गुरु के नाम से भी जाना जाता है। गुरु को शिक्षा, अध्यापक, धर्म, बड़े भाई, दान, परोपकार, संतान आदि का कारक माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में गुरु की स्थिति मजबूत हो तो वह व्यक्ति ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी होता है। इसके अलावा उस व्यक्ति का स्वभाव धार्मिक होता है और उसे जीवन में संतान सुख की प्राप्ति होती है। वहीं यदि बृहस्पति कुंडली में कमज़ोर हो तो उपरोक्त चीज़ों में इसका नकारात्मक असर पड़ता है। बृहस्पति ग्रह को पीला रंग प्रिय है।

शनि ग्रह

शनि पापी ग्रह है और इसकी चाल सबसे धीमी है। अतः सभी ग्रहों में से इसके गोचर की अवधि बड़ी होती है। शनि गोचर के दौरान एक राशि में क़रीब दो से ढ़ाई वर्ष तक रहता है। इसलिए व्यक्ति को इसके परिणाम देर से प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में शनि को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली शनि दोष हो तो उसे उपरोक्त क्षेत्र में हानि का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष में शनि का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। व्यक्ति के शरीर में नाभि का स्थान शनि का होता है। शनि के लिए काले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं।

केतु ग्रह

राहु के समान केतु भी पापी ग्रह है। ज्योतिष में इसे किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार केतु को तंत्र-मंत्र, मोक्ष, जादू, टोना, घाव, ज्वर और पीड़ा का कारक माना गया है। यदि व्यक्ति की जन्मपत्रिका में केतु अशुभ स्थान पर बैठा हो तो जातक को विभिन्न क्षेत्रों हानि का सामना करना पड़ता है। जबकि केतु यदि कुंडली प्रबल हो तो यह व्यक्ति को सांसारिक दुनिया से दूर ले जाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति गूढ़ विज्ञान में अधिक रुचि लेता है। मानव शरीर में केतु का स्थान व्यक्ति के कण्ठ से लेकर हृदय तक होता है। राहु-केतु दोनों के प्रभाव से व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प दोष बनता है।

चंद्र ग्रह

नवग्रहों में चंद्रमा को मन, माता, धन, यात्रा और जल का कारक माना गया है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा जन्म के समय जिस राशि में स्थित होता है वह जातक की चंद्र राशि कहलाती है। हिन्दू ज्योतिष में राशिफल के लिए चंद्र राशि को आधार माना जाता है। यदि जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में चंद्रमा शुभ स्थिति में बैठा हो तो उस व्यक्ति को इसके अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहता है और उसका मन अच्छे कार्यों में लगता है। जबकि चंद्रमा के कमज़ोर होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव या डिप्रेशन जैसी समस्याएँ रहती हैं। मनुष्य की कल्पना शक्ति चंद्र ग्रह से ही संचालित होती है।

बुध ग्रह

वैदिक ज्योतिष में बुध को बुद्धि, तर्क, गणित, संचार, चतुरता, मामा और मित्र का कारक माना गया है। बुध एक तटस्थ ग्रह है। इसलिए यह जिस भी ग्रह की संगति में आता है उसी के अनुसार जातक को इसके परिणाम प्राप्त होते हैं। यदि कुण्डली मे बुध की स्थिति कमज़ोर होती है तो जातक को गणित, तर्कशक्ति, बुद्धि और संवाद में समस्या का सामना करना पड़ता है। जबकि स्थिति मजबूत होने पर जातक को उपरोक्त क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। बुध ग्रह मनुष्य के हृदय में बसता है। ज्योतिष के अनुसार बुध ग्रह का प्रिय रंग हरा है।

शुक्र ग्रह

शुुक्र एक चमकीला ग्रह है। यह विवाह, प्रेम, सौन्दर्य, रोमांस, काम वासना, विलासिता, भौतिक सुख-सुविधा, पति-पत्नी, संगीत, कला, फ़ैशन, डिज़ाइन आदि का कारक होता है। विशेष रूप से पुरुषों की कुंडली में शुक्र को वीर्य का कारक माना गया है। यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत हो तो जातक को जीवन में भौतिक और शारीरिक सुख-सुविधाओं का लाभ प्राप्त होता है। यदि व्यक्ति विवाहित है तो उसका वैवाहिक जीवन सुखी व्यतीत होता है। वहीं यदि शुक्र कुंडली में कमज़ोर हो तो जातक को उपरोक्त क्षेत्र में अशुभ परिणाम देखने को मिलते हैं। शुक्र के लिए गुलाबी रंग शुभ होता है।

राहु ग्रह

राहु एक छाया ग्रह है। ज्योतिष में राहु कठोर वाणी, जुआ, यात्राएँ, चोरी, दुष्टता, त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएँ आदि का कारक होता है। यदि जिस व्यक्ति की कुंडली राहु अशुभ स्थान पर बैठा हो तो उसकी कुंडली में राहु दोष पैदा होता है और उसे कई क्षेत्रों समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। अपने स्वभाव के कारण ही राहु को ज्योतिष में एक पापी ग्रह माना गया है। राहु का स्थान मानव मुख में होता है। राहु-केतु दोनों का सूर्य और चंद्रमा से बैर है और इस बैर के कारण ही ये दोनों सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं।

ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि एवं स्थान का परिणाम

कुंडली में सभी ग्रह अपने से सातवें भाव पर दृष्टि रखते हैं। हालाँकि इनमें बृहस्पति ग्रह अपने से पाँचवें और नौवें भाव पर भी दृष्टि रखता है। जबकि शनि तृतीय और दसवें भाव पर भी दृष्टि रखता है। इसके अलावा मंगल चौथे व आठवें भाव को देखता है। वहीं राहु और केतु क्रमशः पंचम एवं नवम भाव में पूर्ण दृष्टि रखते हैं।

यदि कुंडली में चंद्रमा, बुध और शुक्र जिस स्थान पर होते हैं, उसके परिणामों में वृद्धि करते हैं। इसी प्रकार बृहस्पति ग्रह जिस स्थान पर बैठता है उस भाव के फलों में कमी करता है, लेकिन यह जिस भाव पर दृष्टि रखता है उसके परिणामों में वृद्धि करता है। इसके अलावा मंगल ग्रह जिस भाव में बैठता है और जिस भाव को देखता है, उन दोनों भावों में इसके नकारात्मक परिणाम पड़ते हैं। हालाँकि यह अपने घर में अच्छे परिणाम देता है।

ज्योतिष में ग्रह भचक्र में स्थित राशियों के स्वामी होते हैं। परंतु राहु और केतु छाया ग्रह होने के कारण किसी भी राशि के स्वामी नहीं हैं। इन ग्रहों की नीच और उच्च राशि भी होती है। जैसे –

ग्रह स्वामित्व राशि उच्च राशि नीच राशि
सूर्य सिंह मेष तुला
चंद्रमा कर्क वृषभ वृश्चिक
मंगल मेष, वृश्चिक मकर कर्क
बुध मिथुन, कन्या कन्या मीन
गुरु धनु, मीन कर्क मकर
शुक्र वृषभ, तुला मीन कन्या
शनि मकर, कुंभ तुला मेष
राहु मिथुन धनु
केतु धनु मिथुन