बुद्धि का प्रयोग

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lord shiva
शिव और भस्म
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सारे दुखों का कारण है कुबुद्धि और सारे सुखों का कारण है सद्बुद्धि ! जब हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तो वह हमें सारे सुखों से वंचित कर देती है और अनेक प्रकार के कष्ट तन के, मन के, भय, शोक, संताप के भंवर में धकेल देती है ! जब तक हमारी बुद्धि भ्रष्ट रहती है तब तक अनेक प्रकार के साधन प्राप्त होने पर भी हमें सब व्यर्थ लगने लगता है ! हमें किसी भी तरह चैन नहीं मिलता है और एक चिंता के साथ-साथ दूसरी चिंतायें भी हमारी समक्ष आ कर खड़ी हो जाती हैं ! संसार में जितने भी लड़ाई-झगड़े, आलस, दरिद्रता, व्यभिचार, कुसंगति, चोरी सबके पीछे कुबुद्धि काम करती है ! इसके कारण रोग, चिंता, कलह आदि बहुत प्रकार के दुख मनुष्य को सहने पड़ते हैं और नाना प्रकार के शारीरिक व मानसिक कष्ट भी भोगने पड़ते हैं !
यह बात बिल्कुल सही है कि हम जैसा कर्म करते हैं उसका वैसा ही फल हमें भोगना पड़ता है ! ग़लत कर्म का फल भी ग़लत ही होता है ! दुर्बुद्धि के कारण ही बुरे विचार हमारे अंदर पनपने लगते हैं, उदाहरण के लिए - समाज में कितने बलात्कार होते हैं, पता है सज़ा फाँसी या उम्र क़ैद हो सकती है, लेकिन उसके बाद भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता ! ग़लत विचार मन में आते ही घटना को अंजाम दे दिया जाता है !
लेकिन जब हम उपासना करते हैं, पूजा पाठ करते हैं, दान-धर्म करते हैं तो हमारे मन में सद्विचार स्वयं ही उत्पन्न होने लगते हैं और मनुष्य का जीवन बदलने लगता है ! यदि परिवार में एक व्यक्ति भी पूजा पाठ करता है तो उसे देख कर अन्य व्यक्ति भी पूजा पाठ करना लगते हैं जिससे सभी का जीवन बदलने लगता है ! उनको स्वयं को शांति मिलने लगती है और जो भी उनके संपर्क में आता है वह भी उनसे प्रभावित होने लगता है ! ऐसे व्यक्तियों में एकता, प्रेम, अनुशासन स्वयं ही आने लगता है और ईर्ष्या, दुश्मनी और बदले की भावना, चिंता आदि जीतने भी विकार हैं स्वयं ही नष्ट होने लगते हैं !
सद्बुद्धि के द्वारा मनुष्य जीवन में प्रगती की ओर बढ़ता जाता है ! उसके साथ उसकी परिस्थितियाँ भी बदलने लगती हैं ! पूजा-पाठ के द्वारा उसकी आत्म शुद्धि होने लगती है ! भगवान की ओर उसके कदम बढ़ने लगते हैं ! यहीं से उसमें शक्ति उत्पन्न होने लगती है और बढ़ते बढ़ते एक दिन वह सारी कठिनाइयों को छोड़ कर दूसरों में दोष देखने की बजाए वह अपने आप में झाँकने लगता है और अपने अंदर की कमी को दूर करने लगता है ! एक दिन उसको एहसास होता है कि मुझे दूसरों के कष्ट का कारण नही बनना है अपितु उसके सहायक के रूप में उसका साथ देना है, जिससे वह अपने परिवार को व समाज को सुधारने की कोशिश कर सकता है !