पित्र दोष के बारे में तो पहली भ्रांति इसके नाम और परिभाषा से ही शुरू हो जाती है। पित्र दोष के बारे में मत है कि पित्र दोष पूर्वजों का श्राप होता है जिसके कारण इससे व्यक्ति जीवन भर तरह-तरह की समस्याओं से जूझता रहता है तथा बहुत प्रयास करने पर भी उसे जीवन में सफलता नहीं मिलती। इसके निवारण के लिए व्यक्ति को पूर्वजों की पूजा करवाने के लिए कहा जाता है जिससे उसकी परेशानियों को कम हों!
यह धारणा गलत है क्योंकि पित्र दोष से व्यक्ति के पित्र उसे श्राप नहीं देते बल्कि ऐसे व्यक्ति के पित्र स्वयम ही शापित होते हैं जिसका कारण उनके द्वारा किए गए बुरे कर्म होते हैं जिनका भुगतान उनके वंश में पैदा होने वाले वंशजों को करना पड़ता है। जिस तरह संतान अपने पूर्वजों के गुण-दोष धारण करती है, अपने वंश के खून में चलने वाली अच्छाईयां और बीमारियां धारण करती है, उसी तरह से उसे अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए अच्छे-बुरे कर्मों के फलों को भी धारण करना पड़ता है।
इस का एक कारण बताया जाता है कि आपने अपने पूर्वजों का श्राद्ध-कर्म ठीक से नहीं किया जिसके कारण आपके पित्र आपसे नाराज़ हैं तथा आपकी कुंडली में पित्र दोष बन रहा है। यह सर्वथा गलत है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली उसके जन्म के समय ही निर्धारित हो जाती है तथा इसके साथ ही उसकी कुंडली में बनने वाले योग-दोष का भी निर्धारण होता है और व्यक्ति अपने जीवन काल में अच्छे-बुरे जो भी काम करता है, उनके फलस्वरूप पैदा होने वाले योग-दोष उसकी इस जन्म की कुंडली में नहीं बल्कि उसके अगले जन्मों की कुंडलियों में आते हैं। इसलिए जो पित्र दोष किसी व्यक्ति की इस जन्म की कुंडली में उपस्थित है उसका उस व्यक्ति के इस जन्म के कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है!