आज सारे संसार में अशांति व्याप्त है, चारों ओर हाहाकार मचा है और हर व्यक्ति कुंठा से ग्रस्त है ! मेरा मानना है कि हर व्यक्ति योग को जीवन में अपना ले और गहराई से इसे जान ले तो बहुत हद तक हम अपनी कुंठा से उपर उठ समाज को एकता के सूत्र में बाँध सकते हैं ! योग एक संयम पूर्वक की जाने वाली साधना है और इस साधना को समय लगा कर नियमित करना पड़ता है ! इस साधना के लिए हमें धैर्य से काम लेना पड़ता है ! यह साधना स्वचेतना अर्थात हमारी अपनी चेतना को उस परब्रह्म की चेतना से मिलाती है !
ध्यान एक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चेतना की एक विशेष अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है। ध्यान का उद्देश्य कोई लाभ प्राप्त करना हो सकता है या ध्यान करना अपने-आप में एक लक्ष्य हो सकता है।
ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च की स्पॉट लाइट की तरह होती है जो किसी एक जगह को ही फोकस करती है,लेकिन ध्यान उस बल्ब की तरह है जो चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाता है। आमतौर पर आम लोगों का ध्यान बहुत कम वॉट का हो सकता है, लेकिन योगियों का ध्यान सूरज के प्रकाश की तरह होता है जिसकी जद में ब्रह्मांड की हर चीज पकड़ में आ जाती है।
ध्यान की पद्धति
ध्यान करने के लिए स्वच्छ जगह पर स्वच्छ आसन पे बैठकर साधक अपनी आँखे बंध करके अपने मन को दूसरे सभी संकल्प-विकल्पो से हटाकर शांत कर देता है। और ईश्वर, गुरु, मूर्ति, आत्मा, निराकार परब्रह्म या किसी की भी धारणा करके उसमे अपने मन को स्थिर करके उसमें ही लीन हो जाता है। शांत और चित्त को प्रसन्न करने वाला स्थल ध्यान के लिए अनुकूल है। रात्रि, प्रात:काल या संध्या का समय भी ध्यान के लिए अनुकूल है।
ध्यान में ह्रदय पर ध्यान केन्द्रित करना, ललाट के बीच अग्र भाग में ध्यान केन्द्रित करना, स्वास-उच्छवास की क्रिया पे ध्यान केन्द्रित करना, इष्टदेव या गुरु की धारणा करके उसमे ध्यान केन्द्रित करना,मन को निर्विचार करना, आत्मा पे ध्यान केन्द्रित करना जैसी कई पद्धतियाँ है।
ध्यान के अभ्यास के प्रारंभ में मन की अस्थिरता और एक ही स्थान पर एकांत में लंबे समय तक बैठने की अक्षमता जैसी परेशानीयों का सामना करना पड़ता है। निरंतर अभ्यास के बाद मन को स्थिर किया जा सकता है और एक ही आसन में बैठने के अभ्यास से ये समस्या का समाधान हो जाता है। सदाचार, सद्विचार, यम, नियम का पालन और सात्विक भोजन से भी ध्यान में सरलता प्राप्त होती है। ध्यान का अभ्यास आगे बढ़ने के साथ मन शांत हो जाता है जिसको योग की भाषा में चित्तशुद्धि कहा जाता है। ध्यान में साधक अपने शरीर,वातावरण को भी भूल जाता है और समय का भान भी नहीं रहता।
ध्यान से लाभ
ध्यान के लाभों को महसूस करने के लिए नियमित अभ्यास आवश्यक है| प्रतिदिन यह कुछ ही समय लेता है| प्रतिदिन की दिनचर्या में एक बार आत्मसात कर लेने पर ध्यान दिन का सर्वश्रेष्ठ अंश बन जाता है| ध्यान एक बीज की तरह है| जब आप बीज को प्यार से विकसित करते हैं तो वह उतना ही खिलता जाता है !
1. ध्यान के स्वास्थ्य लाभ -
- ध्यान के कारण शरीर की आतंरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होते हैं और शरीर की प्रत्येक कोशिका प्राणतत्व (ऊर्जा) से भर जाती है|शरीर में प्राणतत्व के बढ़ने से प्रसन्नता, शांति और उत्साह का संचार भी बढ़ जाता है|
2. ध्यान से शारीरिक स्तर पर होने वाले लाभ -
- उच्च रक्तचाप का कम होना, रक्त में लैक्टेट का कम होना, उद्वेग /व्याकुलता का कम होना|
- तनाव से सम्बंधित शरीर में कम दर्द होता है| तनाव जनित सिरदर्द,घाव, अनिद्रा, मांशपेशियों एवं जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है |
- प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार आता है| ऊर्जा के आतंरिक स्रोत में उन्नति के कारण ऊर्जा-स्तर में वृद्धि होती है|
3. ध्यान के मानसिक लाभ -
- ध्यान, मस्तिस्क की तरंगों के स्वरुप को अल्फा स्तर पर ले आता है जिससे चिकित्सा की गति बढ़ जाती है| मस्तिस्क पहले से अधिक सुन्दर, नवीन और कोमल हो जाता है| ध्यान के सतत अभ्यास से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:
- व्यग्रता का कम होना ! भावनात्मक स्थिरता में सुधार
- रचनात्मकता में वृद्धि !
- प्रसन्नता में संवृद्धि, सहज बोध का विकसित होना ! मानसिक शांति एवं स्पष्टता परेशानियों का छोटा होना !
- ध्यान मस्तिस्क को केन्द्रित करते हुए कुशाग्र बनाता है तथा विश्राम प्रदान करते हुए विस्तारित करता है | कुशाग्र बुद्धि व विस्तारित चेतना का समन्वय पूर्णता लाता है |
- ध्यान आपको जागृत करता है कि आपकी आतंरिक मनोवृत्ति ही प्रसन्नता का निर्धारण करती है|
- ध्यान का कोई धर्म नहीं है और किसी भी विचारधारा को मानने वाले इसका अभ्यास कर सकते हैं| ध्यान की अवस्था में आप प्रसन्नता,शांति व अनंत के विस्तार में होते हैं ! आप अपने बारे में जितना ज्यादा जानते जायेंगे, - - - प्राकृतिक रूप से आप स्वयं को ज्यादा खोज पाएंगे|