वक्री ग्रह

कोई भी ग्रह जब अपनी सामान्य दिशा की बजाए उल्टी दिशा में चलना शुरू कर देता है तो ऐसे ग्रह की गति को वक्र गति कहा जाता है तथा वक्र गति से चलने वाले ऐसे ग्रह को वक्री ग्रह माना जाता है।

किसी भी वक्री ग्रह का व्यवहार उसके सामान्य होने की स्थिति से अलग होता है! अधिकतर मामलों में किसी ग्रह के वक्री होने से कुंडली में उसके शुभ या अशुभ होने की स्थिति में कोई फर्क नही पड़ता अर्थात सामान्य स्थिति में किसी कुंडली में शुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह वक्री होने की स्थिति में भी शुभ फल ही प्रदान करेगा तथा सामान्य स्थिति में किसी कुंडली में अशुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह वक्री होने की स्थिति में भी अशुभ फल ही प्रदान करेगा। ग्रह के वक्री होने की स्थिति में उसके व्यवहार में कुछ बदलाव आ जाते हैं। नवग्रहों में सूर्य तथा चन्द्र सदा सामान्य दिशा में ही चलते हैं, यह दोनों ग्रह कभी भी वक्री नहीं और राहु-केतु सदा उल्टी दिशा में ही चलते हैं अर्थात हमेशा ही वक्री रहते हैं।

किसी भी वक्री ग्रह का व्यवहार उसके सामान्य होने की स्थिति से अलग होता है तथा वक्री और सामान्य ग्रहों को एक जैसा नही मानना चाहिए। किन्तु यहां पर यह जान लेना भी आवश्यक है कि अधिकतर मामलों में किसी ग्रह के वक्री होने से कुंडली में उसके शुभ या अशुभ होने की स्थिति में कोई फर्क नही पड़ता अर्थात सामान्य स्थिति में किसी कुंडली में शुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह वक्री होने की स्थिति में भी शुभ फल ही प्रदान करेगा तथा सामान्य स्थिति में किसी कुंडली में अशुभ फल प्रदान करने वाला ग्रह वक्री होने की स्थिति में भी अशुभ फल ही प्रदान करेगा। अधिकतर मामलों में ग्रह के वक्री होने की स्थिति में उसके स्वभाव में कोई फर्क नहीं आता किन्तु उसके व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ जाते हैं। वक्री होने की स्थिति में किसी ग्रह विशेष के व्यवहार में आने वाले इन बदलावों के बारे में जानने से पहले यह जान लें कि नवग्रहों में सूर्य तथा चन्द्र सदा सामान्य दिशा में ही चलते हैं तथा यह दोनों ग्रह कभी भी वक्री नहीं होते। इनके अतिरिक्त राहु-केतु सदा उल्टी दिशा में ही चलते हैं अर्थात हमेशा ही वक्री रहते हैं। इसलिए सूर्य-चन्द्र तथा राहु-केतु के फल तथा व्यवहार सदा सामान्य ही रहते हैं तथा इनमें कोई अंतर नहीं आता। आइए अब देखें कि बाकी के पांच ग्रहों के स्वभाव और व्यवहार में उनके वक्री होने की स्थिति में क्या अंतर आते हैं।

वक्री होने पर गुरू के व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ जाते हैं। वक्री होने की स्थिति में गुरू कई बार शुभ या अशुभ फल देने में देरी कर देते हैं। वक्री होने की स्थिति में गुरू बहुत बार व्यक्ति को दूसरों को बिना मांगी सलाह या उपदेश देने की आदत प्रदान करते हैं। इन बदलावों के अतिरिक्त वक्री गुरू अपने सामान्य स्वभाव की तरह ही आचरण करते हैं।

वक्री होने पर शुक्र के व्यवहार में कुछ बदलाव आ जाते हैं। वक्री शुक्र आम तौर पर व्यक्ति को सामान्य से अधिक संवेदनशील बना देते हैं। पुरुषों की जन्म कुंडली में स्थित वक्री शुक्र उन्हें अति भावुक तथा संवेदनशील बनाने में सक्षम होता है वहीं पर महिलाओं की जन्म कुंडली में स्थित वक्री शुक्र उन्हें आक्रमकता प्रदान करता है। इन बदलावों के अतिरिक्त आम तौर पर वक्री शुक्र अपने सामान्य स्वभाव की तरह ही आचरण करते हैं।

वक्री होने पर मंगल के व्यवहार में कुछ बदलाव अवश्य आ जाते हैं। वक्री मंगल आम तौर पर व्यक्ति को सामान्य से अधिक शारीरिक तथा मानसिक उर्जा प्रदान कर देते हैं जिसका सही दिशा में उपयोग करने में आम तौर पर व्यक्ति सक्षम नहीं रह पाते तथा अचानक ही प्रकट हो जाने वाले गुस्से अथवा चिढ़चिढ़ेपन के रूप में बाहर निकलती है। महिलाओं की जन्म कुंडली में स्थित वक्री मंगल आम तौर पर उन्हें पुरुषों के गुण प्रदान कर देता है तथा ऐसी महिलाएं पुरुषों के कार्य क्षेत्रों में काम करने तथा पुरुषों को सफलता पूर्वक नियत्रित करने में सक्षम होती हैं। इन बदलावों के अतिरिक्त आम तौर पर वक्री मंगल अपने सामान्य स्वभाव की तरह ही आचरण करते हैं।

वक्री होने पर बुध के व्यवहार में कुछ बदलाव आ जाते हैं। वक्री बुध आम तौर पर व्यक्ति की बातचीत करने की क्षमता तथा निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर देते हैं। ऐसे लोग आम तौर पर या तो सामान्य से अधिक बोलने वाले होते हैं या फिर बिल्कुल ही कम बोलने वाले। कई बार ऐसे लोग बहुत कुछ बोलना चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाते तथा कई बार कुछ न बोलने वाली स्थिति में भी बहुत कुच्छ बोल जाते हैं। इन बदलावों के अतिरिक्त आम तौर पर वक्री बुध अपने सामान्य स्वभाव की तरह ही आचरण करते हैं।

शनि ही एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो वक्री होने की स्थिति में व्यक्ति को कुछ न कुछ अशुभ फल अवश्य प्रदान करते हैं फिर चाहे किसी कुंडली में उनका स्वभाव कितना ही शुभ फल देने वाला क्यों न हो। वक्री होने की स्थिति में शनि के स्वभाव में एक नकारात्मकता आ जाती है जो व्यक्ति के लिए बहुत भारी विपत्तियां तक लाने में सक्षम होती है। यदि शनि किसी कुंडली में सामान्य रूप से शुभ फलदायी होकर वक्री हैं तो कुंडली धारक को अपेकक्षाकृत कम नुकसान पहुंचाते हैं! यदि शनि किसी कुंडली में सामान्य रूप से अशुभ फलदायी होकर वक्री हैं तो कुंडली धारक को अपेकक्षाकृत बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।