गंड मूल दोष लगभग हर ४-५ कुंडली में उपस्थित होता है तथा यह दोष कुंडली धारक के जीवन में तरह तरह की परेशानियां तथा अड़चनें पैदा करने में सक्षम होता है।
अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा, रेवती, अश्विनी, श्लेषा, मघा, ज्येष्ठा तथा मूल नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र में स्थित हो तो व्यक्ति का जन्म गंड मूल में हुआ माना जाता है अर्थात उसकी कुंडली में गंड मूल दोष की उपस्थिति मानी जाती है।
कुल 27 नक्षत्रों में से उपर बताए गए 6 नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से यह दोष माना जाता है। गंड मूल दोष तभी बनता है जब उस कुंडली में :
किसी भी कुंडली में गंड मूल दोष तभी बनता है जब उस कुंडली में :
- चन्द्रमा रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में स्थित हों
या - चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में स्थित हों
या - चन्द्रमा श्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में स्थित हों
या - चन्द्रमा मघा नक्षत्र के पहले चरण में स्थित हों
या - चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण में स्थित हों
या - चन्द्रमा मूल नक्षत्र के पहले चरण में स्थित हों
गंड मूल दोष भिन्न-भिन्न कुंडलियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के बुरे प्रभाव देता है जिन्हें ठीक से जानने के लिए यह जानना आवश्यक होगा कि कुंडली में चन्द्रमा इन 6 में से किस नक्षत्र में स्थित हैं, कुंडली के किस भाव में स्थित हैं, कुंडली के दूसरे सकारात्मक या नकारात्मक ग्रहों का चन्द्रमा पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ रहा है, चन्द्रमा उस कुंडली विशेष में किस भाव के स्वामी हैं! अगर यह दोष कुछ कुंडलियों में बनता भी है तो भी इसके बुरे प्रभाव अलग-अलग कुंडलियों में अलग-अलग तरह के होते हैं तथा अन्य दोषों की तरह इस दोष के बुरे प्रभावों को भी किसी विशेष परिभाषा में नहीं बांधना चाहिए!