निराश ना हों

आत्मज्ञान – स्वयं को पहचानो
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हर व्यक्ति के जीवन में ऐसे पल आते हैं कि हर पल मन उदास एवं उचाट रहने लगता है ! हर पल ऐसा लगता है कि कुछ ग़लत या अनिष्ट होने वाला है ! ऐसा आत्मविश्वास की कमी के कारण होता है ! ये तभी होता है जब व्यक्ति ईश्वर पर भरोसा नहीं करता है ! चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त होती है, यदि मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रति विश्वास और आभार का भाव नहीं है तो उससे बड़ा कोई अज्ञानी नहीं है ! यदि वह मनुष्य योनि में आया है तो उसे भगवान का धन्यवाद करना चाहिए, इस योनि में जन्म लेकर ही हम अच्छे बुरे का ध्यान रख सकते हैं ! उसी के अनुसार कर्म करके बार बार जन्म-मृत्यु के चक्र से बच सकते हैं !
ईश्वर दयावान है - जितने भी पशु-पक्षी, कीड़े-मकोडे, जीव-जन्तु और मनुष्य बनाए हैं, सबका कुछ ना कुछ महत्व है, कुछ ना कुछ उपयोग है ! यहाँ तक की जितनी भी वस्तुएँ हैं सबका अपना महत्व है, चाहे वह खाने की हो या पहनने की ! लेकिन इन सबसे अलग सर्वगुण संपन्न मनुष्यों को बनाया है और उनको कर्मों से जोड़ा गया है ! जैसे जैसे कर्म मनुष्य करेगा, वैसा वैसा ही उसको फल प्राप्त होगा ! आज कल व्यक्ति सारा जीवन घर के सामान जुटाने में व मौज मस्ती में लगा देता है ! उसको मार्गदर्शन की ज़रूरत है, जिस दिन उसको आभास कराने वाला मिल जाएगा कि तू इधर उधर क्यूँ भटक रहा है, सब यहीं रह जाना है ! व्यक्ति खाली हाथ आता है व खाली हाथ ही उसको जाना होता है ! अगर बचा सकता है तो बचा उस शक्ति को जो तेरे अंदर विद्यमान है ! तू अद्भुत शक्तियों का स्वामी है, जगा दे अपने अंदर सोई हुई उन शक्तियों को ! कहते हैं - "जहाँ चाह वहाँ राह", मिल जाएगा तुझे उस दिन तुझे कोई ऐसा व्यक्ति या गुरु जो तेरी उन शक्तियों को पहचानने में मदद करेगा ! उस दिन तू ऐसे गर्व की अनुभूति प्राप्त करेगा कि निराशा हमेशा के लिए तेरे जीवन से चली जाएगी !
ईश्वर हमेशा न्याय करता है ! व्यक्ति के जीवन में हमेशा दो मार्ग होते हैं, अच्छा या बुरा, उसे किस मार्ग पे चलना है यह चुनाव उसे स्वयं ही करना पड़ता है ! हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जीवन कर्मों पर आधारित होता है ! कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो ! गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि तू केवल कर्म कर फल की इच्छा मत कर !